दिल्ली मे जल्दही ओबीसी साहित्य सम्मेलन होने जा रहा है। यह है, महाराष्ट्रा के फुले-शाहू-आंबेडकर के विचारों की ताकद। हमने महाराष्ट्रा मे 2005 से ओबीसी साहित्य की जो मुव्हमेंट शूरू की थी, वो एक साल पहलेही दिल्ली तक पहुच गयी है। करीब 1 साल के काल मे दिल्ली विश्वविद्यालय और जे.एन.यु. मे इस विषयपर जो प्रोग्राम हुए, उसका ब्योरा मै पहले भी दे चूका हुं। प्रॉमिनन्ट जर्नॅलिस्ट दिलीप सी मंडल, प्रोफेसर केदार मंडल, प्रोफेसर डॉक्टर संदिप कुमार, जे.एन.यु. के स्कॉलर दिलीप यादव इन्होने कल मिटींग करके इस बात को आगे बढाया है। धन्यवाद दिलीप जी। जल्दही हमे एक राष्ट्रीय ओबीसी साहित्य परिषद स्थापित करनी होगी। उसका मेमोरंडम मै शॉर्ट मे एक साल पहलेही सबको दे चूका हुं। उसकी कॉपी जोड रहा हुं।.........
अलग राज्य से जो ओबीसी साहित्यिक जुडना चाहते है,
वो संपर्क करे....
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An
Appeal
From Proposed ‘All India OBC literature
council’
प्रस्तावित ‘ऑल इंडिया ओबीसी साहित्य परिषद’ का आवाहन!
ओबीसी मित्रों!
किसी
एक व्यक्तिविशेष की और उसके समाज की पहचान केवल संपत्ति से या राजसत्ता जैसी ऊपरी
चीजो से नहीं होती है। विषम समाजव्यवस्था में व्यक्ति की पहचान उसके वर्ग, वंश,
जाति, लिंग, धर्म आदि से बने समाज इकाई से होती है। और यह पहचान छुपाकर ‘केवल एक
इन्सान’ बनने की कोशिश कोई कितनी भी कर ले, सफल नहीं होती। केवल भारत में ही नहीं,
दुनिया के सभी
देश के साधु-संत जैसे महापुरूषों ने सैंकडों साल से यह कोशिश की है
और कर रहे हैं। मगर इस विभाजित पहचान से दूर भागकर यह कार्य पूरा नहीं हो सकता।
अगर समाज मे समता पुनर्स्थापित करनी है तो यह विभाजित पहचान को नजदिकी से जानना
होगा। हमारा इतिहास, हमारे पुरखे, उनका कार्य, रीतिरिवाज, व्यवहार आदि जानने के बाद
ही पता चलता है किं हम पहले क्या थे और अब क्या बन गये हैं। यह सब कैसे हुआ, क्यों
हुआ, किसकी वजह से हुआ, यह सब जानने के बाद ही मालूम होता है कि हमारे सच्चे दोस्त
कौन है और दुष्मन कौन हैं? समाज को जाति, धर्म जैसे कृत्रिम वर्गों मे बॉंटकर जो
लोग अपने आपको ऊॅंचा साबित कर रहे हैं, और हमारा शोषण कर रहे हैं, उनकी पहचान करना
बहुत जरूरी होता है। तभी तो हम समता प्रस्थापित करने के लिए संघर्ष कर सकेंगे।
समाज
के हर विभाजित समाज इकाई की अपनी खुद की अलग संस्कृति होती है। और यह संस्कृति
हमारे इतिहास और पुरखों के विचार और कार्य से सिद्ध होती है। हमारे पुरखो ने अपना
इतिहास, विचार और कार्य साहित्य के रूप मे जीवित रखने की भरपूर कोशिश की है, और
अभी भी कर रहे हैं। सिंधू सभ्यता से लेकर आजतक हमारे पुरखे नृत्य, गान, लोककथा,
लोकसाहित्य के माध्यम से अपनी संस्कृति का जतन कर रहे हैं और विकास भी कर रहे हैं।
लेकिन शोषण करनेवाले (सो कॉल्ड) उॅंचे लोग हमारी संस्कृति को नष्ट करना चाहते है,
ताकि हम उनकी संस्कृति को अपनाकर उनके गुलाम बने रहे। आज हमारी संस्कृति को हम भूल
रहे हैं और मनुवादी संस्कृति को अपनी संस्कृति मान रहे हैं।
अपनी
संस्कृति को खोजना, पहचानना, और सिद्ध करना आवश्यक होता है। इस कार्य को अगर एक
शब्द में कहा जाय तो वह शब्द है- ‘सांस्कृतिक संघर्ष’। और यह काम साहित्य के
माध्यम से किया जाता है। आज भारत के हर प्रदेश में हर भाषा में साहित्य
संगोष्ठियॉं हो रही हैं। साहित्य संम्मेलन हो रहे हैं। लेकिन भाषा और प्रदेश के
आधार पर हो रही यह साहित्य संगोष्ठियॉं और संम्मेलनों पर मनुवादी साहित्य-संस्कृति
का कब्जा है। इसका मतलब यह हुआ कि, साहित्य के माध्यम से ब्राह्मणवादी
साहित्य-संस्कृति को हमारे ऊपर थोपने का काम चल रहा है। क्योंकि इन साहित्य संम्मेलनों
मे परशूराम, गणेश, राम और सरस्वति जैसी प्रतिमाओं का गौरव किया जाता है और शंबुक,
निऋति, शूर्पनखा, ताटका, रावन, बलीराजा और महिषासुर जैसे हमारे संस्कृति के
महानायक याद भी नहीं किये जाते। इस मनुवादी षडयंत्र के खिलाफ पहला विद्रोह
तात्यासाहब महात्मा जोतीराव फुले जी ने किया। इसी से से प्रेरणा लेकर डा. बाबासाहब
आंबेडकर जी ने साहित्य निर्माण किया। आज दलित साहित्यिक अपना खुद का साहित्य
निर्माण कर रहे हैं और उसे समाज के सामने रखने के लिए सभा-संम्मेलन भी कर रहे हैं।
वही काम आदिवासी साहित्यिक भी कर रहे हैं। इसलिए आज दलित और आदिवासी सम्मान की
लडाई लड रहे हैं और वे उसमें काफी हद तक
सफल भी हो रहे हैं। हमारा ओबीसी समाज अपना
खुद का साहित्य निर्माण कर रहा हैं, मगर इसको समाज के सामने रखने के लिए कोई मंच
नहीं हैं, कोई संघटन भी नहीं हैं। महाराष्ट्र में यह काम ओबीसी संघठन ने शुरू कर
दिया है। लेकिन देश के स्तर पर यह काम करने के लिए हमे ‘अखिल भारतीय ओबीसी साहित्य परिषद’ का निर्माण करना आज की आवश्यकता है।
इस
हेतु हम ‘’अखिल भारतीय ओबीसी परिषद’’ (All India OBC Literature Council) का गठन
करना चाहते हैं। इस लिए दिल्ली में दिनांक ...................... समय ............
बजे निम्न लिखे स्थान पर मिटींग बुला रहे हैं। हम आपसे इस पत्र द्वारा विनम्र
आवाहन करते हैं कि, इस विषय में जो ओबीसी विचारक, ओबीसी लेखक, ओबीसी साहित्यिक,
ओबीसी पत्रकार, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता इंटरेस्टेड हैं, वह हमें निम्नलिखित फोन पर
संपर्क करें या SMS करें।
दिल्ली
सेः-दिलीप सी. मंडल, केदार मंडल, संदिप यादव, दिलीप यादव,
महाराष्ट्र
सेः- श्रावण देवरे, वंदना महाजन, लता पी.एम., प्रल्हाद लुलेकर, सतिश
शिरसाठ, प्रभाकर हरकल,
मोबाईल- 094 227 88 546 / 0253-2418546