ई. व्ही. एम. .......!
आजकल ईव्हीएम के बारे
मे चर्चा शिखरपर है! यह चर्चा 2004 से ही दबी आवाज मे शुरू हो यी थी! 2009 मे मैने
खुद इसपर लिखा भी था और शंका जाहीर भी की थी! मगर 2014 के बाद चर्चा गतिमान हुई और
अब 2017 मे यु.पी. चुनाव के बाद मामला सुप्रिम कोर्टतक पहुच रहा है! वोटींग के साथ
(VVPAT) पर्ची का भी जिक्र चल रहा है, जो सुप्रिम कोर्ट ने अनिवार्य किया था मगर
नही हो रहा है! इसीलिए शक की जगह (अ) विश्वास भी पक्का होता जा रहा है! सभी
पार्टीया शक कर रही है, मगर मान्यवर वामन मेश्रामजी की बहुजन मुक्ती पार्टी, केजरीवालकी
आप और बहनजी की बसपा के शिवाय काई मैदान मे नही आना चाहता! मगर इनकी बात लोग क्यों
माने? क्योंकी इसी मशिन के सहारे यह दोनो पार्टीया यु.पी. और देल्ही दो-दो बार
भारी बहुमत से जितके आई थी!
व्होटिंग मशिन के
बारेमे ऐसी चर्चा करते हुए एक बात हमे ध्यान से देखनी पडेगी की, जबतक कॉंग्रेस
आक्षेप लेकर आगे नही आएगी तबतक कुछ हल ना निकलेगा! क्योंकी 2014 से सबसे ज्यादा
मशिन की मार कॉंग्रेस झेल रही है! इसके हाथसे तो पुरा देश छुट रहा है फिरभी
कॉंग्रेस एक शब्द भी व्होटींग मशिन के खिलाफ नही बोल रही है! सवाल यह उठाना चाहीए की,
अगर मशिन मे गडबडी की जा सकती है तो सबसे ज्यादा मार खानेवाली राष्ट्रीय पार्टी
कॉंग्रेस चूप क्यों है?
इस सवाल के बारे मे
बादमे सोचेंगे! पहले यह सोचा जाय की, क्या मशिन मे गडबडी की जा सकती है? अगर की जा
सकती है, तो यह गडबडी कब होती है? मशिन बनते वक्त? मशिन बनने के बाद? वोटींग सुरू
होने से पहले? वोटींग खतम होने के तुरंत बाद और सील करने के पहले? सील होने के बाद रास्ते मे? स्ट्रॉंग रुम मे बंद होने के बाद? स्ट्रॉंग
रुमसे गिणती हॉलतक के रास्तेमे? गिणती हॉल मे गिणती शुरू होने से पहले? कब होती है
यह गडबडी? अगर मशिन को गलत साबित करना है तो हर उस मुद्देकी चर्चा हमे करनी चाहीए
जो खाल खिचकर अंदरतक जाकर कुछ ठोस मुद्दा रख सके!! लेकीन जो चर्चा मै सून और पढ
रहा हुं, उसमे एसा कोई मुद्दा सामने नही आया, जो खाल खिंच सके! बस्स! एकही रट
लगायी जाती है, मनुवादी लोग, फेकू महाशय, वगैरे वगैरे! ब्राह्मणों को गाली देकर
अपने आपको शांत किया जा रहा है! चर्चा कोई नही कर हा है!
दो अपवाद है! एक संजीव
खुदशाह साहब और दुसरे दिलीप मंडल साहब! संजीव जी ने विस्तारसे चर्चा करते हुऐ कहा
की वोटींग के बाद जब सबके सामने मतलब अलग अलग पार्टी के पोलींग एजंट्स के सामने
मशिन सीलबंद की जाती है, तबतक के सफर मे मशिन मे गडबडी नही की जा सकती है! इसी
वजहसे संजीव साहब ने गहरे आत्मविश्वास के साथ कहा है की, ‘ नही! मशिन मे कोई गडबडी
नही की जा सकती! अगर गडबडी है तो उन लोगों के दिमाग मे है, जो मशिनपर शक कर रहे
है!’
दिलीप मंडलसाहब ने कहा
था की, ‘जिस राज्य के शासन-प्रशासन मे ओबीसी-बीसी का पर्याप्त प्रतिनिधीत्व है, उन
राज्यो मे मशिन मे गडबडी नही की सकती!’ उदाहरण के तौर पर उन्होने बिहार राज्य के
ऍसेंब्ली चुनाव बताया जहा भाजपा हार गयी और राजद-जेडीयु का महागठबंधन सत्ता मे
आया! और उत्तरप्रदेश मे भी यह गडबडी नही हो सकती ऐसी भविष्यवाणी भी उन्होने की थी!
मगर यह मुद्दा साबित ना हुआ! क्योंकी 2014 के पार्लमेंट्री इलेक्शन मे बिहार और
युपीमे गैर-भाजपाई पुरी तरहसे वॉशआऊट हो गये थे! जैसे 2017 मे युपी असेंब्ली मे भी
वॉशआऊट हो गये है! मगर बिहार राज्य के 2015 के चुनाव मे ऐसा क्यों नही हुआ? क्या
उसी वक्त शासन-प्रशासन के ओबीसी जागृत हो गये थे? 2014, 2015, 2017 अंतर तो कुछ
ज्यादा नही है! तो हल कैसे निकले?
दुसरा महत्वपूर्ण सवाल
यह है की, जो गडबडी की जा सकती है वो मशिन के अंदर या बाहर? अंदर के बारे मे मैने
सोचा! 2009 मे मैने खुद ने एक सवाल उठाया था की क्या सॅटिलाईट के माध्यम से इस
मशिनके अंदरकी सिस्टीम को प्रभावित किया जा सकता है? 2009 मे मैने कुछ एक्सपर्ट से
बात की! उदाहरण के तौर पर मुंबई के ट्रेन की सिग्नल सिस्टीम जो सॅटेलाईट्से
कंट्रोल की जा सकती है, ऐसा मैने सुना था! मगर इस सिस्टीम के एक्सपर्ट से पता चला
की ऐसा कुछ नही है और एसा हो भी नही सकता! रिमोट कंट्रोल से यह संभव नही!
ऑटो-सेन्सेटिव्ह सिस्टीमसे ही सिग्नल काम करते है! अगर सभी मशिन मे कुछ बदलाव करना
है, तो बाहरसे किसी रिमोल कंट्रोल से, सॅटेलाईटसे या किसी चिपसे यह संभव नही! अगर
मशिन के अंदर जाकर कुछ बदलाव करना है तो वो भी संभव नही, क्यों की ऐसे कितने मशिन
के सील आप तोड सकते है? और सील तोडना भी चाहते है तो फिरसे सील करने के लिए इतने
लोगोंकी साईन हुबेहुब करने के लिए लगनेवाला टाईम भी तो ज्यादा होता है! स्ट्रॉंग
रूममे हेराफेरी के कम चान्सेस है, क्यों की काऊंटिंग के दिन तक कुछ भी हो सकता है!
इससे यह बात साफ होती है की, मशिन के अंदर जाकर या बाहरसे अंदरकी सिस्टीम बदली नही
जा सकती! तो फिर हल कैसे निकले? एकही मार्ग बाकी रहता है.... और वो है बाहर से बाहरी फेरफार!
अगर दिलीप मंडल साहब
और संजीव खुदशाह साहब इन दोनों के मुद्दे एकसाथ लेकर चर्चा की जाय तो हल मिल सकता
है! सोल्युशन को हासिल करने का रास्ता इनके मुद्दों से मिल सकता है! संजीव कहते है
के वोटींग के बाद सबके सामने सील की गयी मशिन मे कुछ भी गडबडी नही की जा सकती है!
मतलब मशिन के निर्माण से लेकर वोटिंग के बाद सील लगने तक कोई गडबडी नही हो सकती!
यह बात 16 आने सच है! मगर सील करने के बाद वाहनसे स्ट्रॉंगरुम मे लाया जाता है!
जिस गाडी से अनेक मशिन्स स्ट्रॉंग रुममे लायी जाती है, उस गाडी मे सभी बुथके
कर्मचारी उपस्थित रहते है और वो कमसेकम 30-35 लोग रहते है! तो वहा भी बाहरसे बाहरी
गडबडी या अंदरसे अंदरकी गडबडी संभव नही! स्ट्रॉंग रुममे भी यह गडबडी संभव नही
क्योंकी सीसीटिव्ही लगायी जाती है और आय.ए.एस., आय.पी.एस दर्जे की निगराणी भी होती
है!! यह बाहरी गडबडी बाहरसे तभी संभव है जब कमसेकम लोग मशिन्स के संपर्क मे हो,
कमसेकम वक्त का सफर हो, कोई सीसीटिव्ही भी ना हो! और काऊंटिंग सुरू होने से कुछ
समय पहले हो! ताकी जांच-पडताल को कोई टाइम ना मिले! काउंटिंग हॉल मे पहुचने के बाद
तो कुछ गडबडी संभव ही नही क्योंकी वहा तो पार्टी एजंट्स और दुसरे लोगोंकी भीड रहती
है! गडबडी करने के लिए यह आवश्यक है की, मशिन्स के आसपास कमसे कम लोग हो, सफर का
वक्त कमसे कम हो और कोई कॅमेरा भी नही हो! काऊंटिंग सुरू होने से कुछ समय पहले हो!
ताकी जांच-पडताल को कोई टाइम ना मिले! ऐसी स्थिती एकही है और वो है... स्ट्रॉंग रुमसे
लेकर काऊंटिंग हॉल का रास्ता! यहापर दिलीप मंडल जी का प्रशासन-कर्मचारी का मुद्दा
काम करता है! 3-4 लोग जो गाडीमे रहते है वो आसानी से मॅनेज किये जा सकते है! इस
रास्तेपर बाहरसे बाहरी गडबडी की जा सकती है! यह क्या गडबडी है, जो हो सकती है?
रास्ते मे सब मिलाकर 10-12 मशिन्स बदले जा सकते है! ओर 10-12 मशिन्स बदलने का मतलब
है कमसे कम 12-15 हजार वोटींग का फेरफार! इससे ज्यादा कुछ नही किया जा सकता है!
अगर कोई सत्ताधारी वर्गजाती-पक्षका उम्मीदवार इस चुनाव मे 8-10 हजार से हारने की
संभावना है तो वो इस तरह की गडबडी की वजहसे थोडी-बहुत मार्जिनसे जीत जाएगा! और
उनका कोई उम्मीदवार पहलेसेही अपने दमपे जीत रहा है, तो वो इस गडबडी के वजहसे भारी
बहुमतसे जीतेगा!
एक खुलासा जरूर करना
चाहुंगा! सायन्स-टेक्नॉलॉजी के बारे मे आज जो कुछ कहा जाएगा वो कलतक कायम नही
रहता! क्योंकी सायन्स-टेक्नॉलॉजी निरंतर विकास की दिशा मे जानेवाली चीज होती है,
यह तो हम भारतीय इन्सान है, जो टेक्नॉलॉजी के सहारे आगे बढने के बजाय पिछे जाने मे
मतलब हासिल करते है! ईव्हीएम घोटाला इसका सही उदाहरण है! ईव्हीएम घोटाला किसी भी
कारण हो, कैसे भी किया जाता हो, मगर इस घोटाले के कारण 100 परसेंट जीत इंपॉसिबल
है! और जीस दिन घोटाले का परसेंट बढ जाएगा, समझो उस दिन रुलिंग क्लास-कास्ट मे
जातीय दरार बढ गयी है और एक बडा हादसा भारतीय पॉलिटिक्स मे होनेवाला है! इसके आसार
भी अभी दिखने लगे है! बस्स देरी राईट टाईम की है!
हमारे कुछ लोग फिरसे ‘बॅलेट-पेपर
वोटिंग सिस्टिम’ की मांग कर रहे है. इस तरह फिरसे पिछे जाने के बजाय और आगे जानेके
बारे मे हम क्यों नही सोचते? बॅलेट-पेपर मे भी घोटाले होते थे. ऐसी वोटिंग मशिन
बनायी जाय जिसमे वोटिंग करनेवालेकी तस्वीर, मतदाता क्रमांक, मत क्रमांक, मतदान का
समय और मतदाता के अंगुठे के निशाण यह सब रेकॉर्ड हो जाय और VVPAT की पर्चीपर यह सब
इनफर्मेशन प्रिंट हो जाय. मतगणना VVPAT की पर्ची से हो ना की मशिनपरसे. मशिन तो
सिर्फ रेकॉर्डींग के लिए हो. रिझल्ट डिक्लेयर करनेसे पहले VVPAT की पर्ची की गणना
मशिन की रिकॉर्ड से सत्यापन (Tally) कर ली जाय ताकी किसीको शक ना हो. यह सब तभी
पॉसिबल होगा जब हमारा बहुजनराज दिल्ली मे स्थापित होगा.
अब सवाल यह खडा होता
है की, इसतरह EVM की गडबडी कौन कर रहा है? गडबडी करने का संबंध सिर्फ तैनात
प्रशासक-कर्मचारी और रिश्वतके पैसे से है, तो यह गडबडी कोई भी कर सकता है. अपक्ष
और स्वतंत्र खडे उम्मीदवार भी कर सकते है. क्योंकी वो भी तो करोडपती-अब्जोपती होते
है. क्या वो यह षडयंत्र कर सकते है? नही कर सकते. क्योंकी ईव्हीएम को बदलने के लिए
उतनेही और वैसेही दुसरे ईव्हीएम चाहीए और पूरी नकल के साथ चाहिए. और यह इतना आसान
काम नही है. दुसरी बात, कौनसी गाडी कौनसे कामपर लगाना है और कौनसी मशिन्स लेकर जा
रही है, यह इनफर्मेशन वगैरा मिलना आसान नही होता. तो यह कोई पैसों का खेल नही है,
के हर कोई दाव लगा ले. यह दांव है सिस्टीम का. अगर सिस्टीम के बाहरका कोई भी आदमी
या उम्मिदवार दाव लगानेकी हरकत करेगा तो समझो वो हो गया हमेशा के लिए दुनियासे
‘बाहर’. रुलींग अप्परकास्ट के सरकारी एजन्सीज की शिवाय यह खतरनाक दावं कोई नही लगा
सकता. EVM की गडबडी मे शामिल सभी लोगों को सुरक्षा देने का पक्का वादा होता है, जो
निभाया भी जाता है. क्योंकी यह सिस्टीम को बचानेवाला खेल है, जिसके बारे मे हम
क्रांतिकारी, पुरोगामी, फुले-आंबेडकरवादी वगैरा वगैरा हमेशा अन्जान होते है! बस्स!
दो-चार गालीयां फेबुपर मोहन भागवत को दे दी ..... तो हो गया हमारा आत्मा शांत और
समाधानी! रातको बहोत अच्छी निंद आती है!
इव्हीएम घोटाला को सच
माननेवालेको इन मुद्दोंपर ध्यान देना चाहीए!
1)
इव्हीएम मे अगर घोटाला हो रहा है तो वह केवल 2 या 3 परसेंट
व्होट का फेरफार करने के लिए हो सकता है, किसीको पुरे 100 परसेंट जीताने के लिए
नही!
2)
इव्हीएम का घोटाला किसी भी तरह हो रहा हो, तो वो पैसों की
वजहसे नही! सिस्टिम को बचाने के लिए राष्ट्रिय स्तरपर हो रहा है षडयंत्र!
3)
यह घोटाला जो भी कर रहा है वो राष्ट्रीय स्तर के संघटन का
षडयंत्र है!
अब आप कहेंगे की
राष्ट्रीय स्तर का संघटन तो केवल आर.एस.एस. है ओर वही भाजपा को जीता रही है. यह
सोच बिल्कूल गलत है. कोई भी भूप्रदेश जब राष्ट्र बनने के लिए गठीत होता है तो उसके
कुछ उद्दिष्ट होते है. इन उद्दिष्टोंको साध्य करने के लिए कुछ नितीयां होती है.
जैसे की अमेरिका का मुख्य उद्दिष्ट दुनियाभर मे उनका (Monopoly Capitalist)
वर्चस्व कायम बने रहे. इस उद्दिष्ट को साध्य करने के लिए अमेरिका के रूलींग क्लास
ने मिलीट्री, सी.आय.ए., एफ.बी.आय. पेंटॅगॉन वगैरे संस्थाए निर्माण कर रखी है. यह
संस्थाए अपने एजंट्स का जाल दुनियाभरमे फैला देते है और अपने राष्ट्र के हित मे
काम करते है. इनको इतनी स्वतंत्रता रहती है के यह किसी को जबाबदेही नही रहते है.
ऑन पेपर इनका बॉस देशका प्रेसिडेंट होता है, मगर ऑफ दि रेकॉर्ड यह लोग अपने प्रेसिडेंट
को भी जान से मार देते है. दुसरे देशो मे इनके एजंट्स इस तरह से काम करते है जिससे
वह देश अमेरिका की गुलामी से बाहर ना निकले. उदाहरण के तौरपर मै बताउंगा..... भारत
के 50 से अधिक सायंटिस्ट इन दो सालमे मारे गये है, और खुनी नही मिल रहे है! 10
चुहे भी अगर किसी एक जगहपर मरे पडे दिख जाए, तो भारतका मिडिया वेल्थ ऑफिसर से लेकर
वेल्थ मिनिस्टर तक के सभी जिम्मेदार लोगों के पिछे पड जाता है! मगर इतने बडे
पैमाने पर सायंटिस्ट मारे जा रहे है और कोई मिडिया इसको अपनी न्युज नही बना रहा
है. बस्स, इस विषयपर सुप्रिम कोर्ट चिल्ला रहा है, और किसी के पास वक्तही नही
सुप्रिम कोर्ट की कुछ सुने. तो यह होता है अमरिका का आंतरराष्ट्रीय षडयंत्र, अपने
राष्ट्र के हित मे काम करने का. उसी तरह हर देश मे रूलींग क्लास की ऐसी संस्थाऐ होती
है, जो हर पाच साल मे आनेवाली-जानेवाली सरकार से बेमतलब रहती है. उसका काम सिर्फ
अपने देश के रूलींग क्लास की सिस्टिम को बचाना होता है. जो भी कोई उनकी सिस्टीम को
धक्का पहुंचानेकी कोशिश करता है उसको ठिक करने के लिए लालच, बहिष्कृतता, दहशत,
जेल, मौत ऐसा कोईभी हत्यार युज किया जाता है.
भारत मे वर्गव्यवस्था
नही है, जातीव्यवस्था है जो वर्गव्यवस्थासे प्रभावी होती जा रही है! इसलिए भारत मे
रूलींग क्लास नही, रुलींग कास्ट-क्लास है. ओर इस रुलींग कास्ट ने अपने देश के कुछ
उद्दीष्ट तय कीए है. अपनेही देशमे अपने वर्ग-जात का वर्चस्व कायम रहे और अपने
अप्पर वर्ग-जातकी सिस्टीम कायम रहे, यह इसका मुख्य उद्दिष्ट है! वह इस तरह है.......
1)
वर्ण सिस्टीम खतम करनेवाले बौद्ध धम्म ने अपनी विचारधारा की
युनिव्हर्सिटीज बनाई! इन बौद्ध विद्यापीठोने अपने पाठ्यक्रम किताबों की माध्यमसे
रेनेसॉन्स मुव्हमेंट चलाया जिसकी वजहसे वर्णसिस्टीम खतम हो गयी! मतलब वर्ण-संघर्ष
वर्ण-युद्ध मे तबदिल नही हुआ और वर्णांतकी क्रांती शांतीसे, अहिंसा से कामयाब हो
गयी! बौद्धधम्म क्रांतीने जिसतरहसे शांती-अहिंसा से क्रांती का काम किया, इससे सिख
लेकर जाती सिस्टीम को निर्माण ओर कायम करने के लिए मनुवादीयों ने बौद्ध
युनिव्हर्सिटीज नष्ट कर दी और अपने विचारधारा की युनिव्हर्सिटीज का निर्माण कीया.
2)
लेकीन जाती सिस्टीम की कमजोरी की वजहसे बाहरी आक्रमणकारी मुस्लीम
और अंग्रेज पॉलिटिकल पॉवर मे आ गये! परिणाम यह हुआ की जाती सिस्टीम को खतम करने के
लिए संत नामदेव से लेकर संत रईदास और फुले-शाहू-आंबेडकर जैसे महापुरूष निर्माण हो
गये.
3)
मुस्लीम और अंग्रेज तो केवल पॉलिटिकल पॉवर मे थे, रिलिजीयस,
सोशियल, कल्चरल पॉवरमे तो ब्राह्मीण कास्ट कायम थी. जैसे ही मुस्लीम और अंग्रेज
पॉलिटिकल पॉवर से हट गये, पूरी सत्ता ब्राह्मीण कास्ट के हाथमे आ गयी! स्वतंत्र
भारत मे अब ब्राह्मीण कास्ट फूल पॉवरमे है. इसी वजहसे आज देशमे जितने भी
युनिव्हर्सिटीज है, सभी के सभी ब्राह्मीण विचारधारा की है, जो प्रतिक्रांतिके लिए
देश के युवाओं को तय्यार कर रही है. और इस प्रतिक्रांति के लिए SC+ST+OBC युवाओंको
उतावले करने का काम चल रहा है. स्वतंत्रता के बाद तुरंत पहला काम यह किया गया की
रुलींग अप्पर कास्टकी सरकारी एजंन्सियां गठीत की गयी, जो हरपल हरक्षण सतर्क रहे,
ताकी देशकी अप्पर कास्ट डॉमिनेटेड सिस्टीम को कोई धक्का न लगा सके.
4)
कांशीराम साहब के आंदोलन की वजहसे दलित जागा और मंडल कमिशन
के लिए किये गये आंदोलन की वजह से जैसेही 52 परसेंट ओबीसी तबका जागृत होने लगा,
जाती सिस्टिम की नींव हिलने लगी. 1992 से भारतीय पॉलिटिक्स मे अप्पर कास्ट का
वर्चस्व कम होते गया और दलित-ओबीसी का वर्चस्व बढते गया. ऐसी स्थिती मे देशमे केवल
दलित-ओबीसी पार्टीज के अलायन्सकी सरकार प्रस्थापित होने की शुरूवात हो गयी,
उदाहरण... देवेगौडा की केंद्रिय सरकार.... अब यह सरकारी एजंन्सियों ने रूलिंग कास्ट को
सलाह दी की.... आपको बचना है तो EVM लेके आओ. सो लेके आए...
5)
जैसे जैसे दलित-ओबीसी जाग्रती बढने लगी EVM के घोटालेका
परसेंटेज बढता गया! लेकीन एक हदतक ही वह बढ सकता था! उससे ज्यादा नही. EVM के
घोटाले की वजहसे 2004 मे और 2009 मे हंग पार्लमेंट आयी और कॉंग्रेस ओबीसी-बहुजन
पार्टीज की मददसे सत्ता मे आयी.
6)
2009 के बाद ‘जातीगत
जनगणना’ के मुद्देकी वजहसे ओबीसी जाग्रती बढ गयी. EVM घोटाले का परसेंटेज अपनी
सीमा के चरम अवस्थापर था. ओबीसी जाग्रती के परसेंटेज को पार करना मुष्कील लग रहा
था. केवल अँटीइन्कंबंस्सी पर भरोसा नही कीया जा सकता था! ऐसी स्थिती मे यह रुलिंग
कास्ट की सरकारी संस्थाऐ अपने रूलिंग कास्ट को कुछ हिंट देती है और यह पार्टीज
उसपर अमल करती है. उदाहरण के तौर पर बताना चाहता हुं.... 2011 मे सबसे पहले अंबानी
ने नेक्स्ट पी.एम. के लिए मोदी जी का नाम आगे किया. उसके बाद 2012 मे इंटरनॅशनल
मॅगेझीन ‘टाईम्स’ ने स्पष्ट कर दिया की मोदीजीही अगले पी.एम. होंगे. मोदी जी को
प्रधानमंत्री का उम्मिदवार बनाने का सुझाव इसी सरकारी संस्थाओं ने दिया था, जो मान
लिया गया और सक्किस भी हो गया.
7)
2014 मे भी EVM से इलेक्शन हुआ था. अगर केवल EVM के घोटाले
के भरोसे इलेक्शन जीता जा सकता है तो कोईभी ब्राह्मीण व्यक्ती प्रधानमंत्री का उम्मिदवार
बना देते और EVM से भारत की सत्ता पा लेते. मोदीजी की जरूरत क्या थी? जरूरत थी, और
शुद्र-ओबीसीकीही जरूरत थी. परिसंघ के रामराज की नही. क्यों की ओबीसी जाग्रती का
पॉलिटिकल परसेंटेज इतना बढ गया की वो EVM के घोटाले के परसेंटेज को परास्त करने जा
रहा था. इसीलिए ओबीसी फेस नरेंद्र भाईकी जरूरत आ गयी.
8)
मिडिया मोदीसाहब को जितना ‘ओबीसी फेस’ बता रहा था, उतनाही
काफी था, भाजपा डॉमिनेटेड हंग पार्लमेंट के लिए! लेकीन मोदि साहब अपने मातृसंघटन
से भी आगे बढ गये! अपनेआपको पिछडा, निची जात का बताने लगे भरी सभाओं मे! और सब दोष
रख दिया कॉंग्रेस के सरपर! इसकी वजहसे ओबीसी आक्रमक भी हो गया और उसके जागृती का
परसेंटेज भी बढ गया! इसके परिणाम जो होने थे वो चुनाव नतीजे के दिन उजागर हो गये,
जिसकी उम्मिद ना कॉंग्रेस ने की थी, ना RSS-BJP ने! विशेषज्ञ की बात तो बहोत
दुरकी! भारत के इतिहास मे यह घटना पहलीबार घट रही थी की, कोई प्रधानमंत्रीपद का
उम्मिदवार प्रचार सभाओ मे खुदको नीचली जातका ओबीसी बताकर वोट मांग रहा हो! ऐसा तब
किया जाता है, जब उस कॅटिगोरी की वोट बँक निर्णायक (Dominent and Guaranteed ) हो.
EVM घोटाले का फायदा इतनाही हुआ की, 20-25 सीट ज्यादा आगयी. लेकीन करिष्मा तो
ओबीसी वोटबँककाही था!
अब EVM के विषयपर फिरसे आते है. 2004 के लोकसभा इलेक्शन मे भी EVM था. लेकीन
EVM के घोटाले का परसेंटेज ओबीसी जागृती के परसेंटेजपर उतनाही हावी हुआ जितना
कॉंग्रेस पार्टी को लाभदायक था. 2009 मे फिर EVM ही था. इसबार भाजपा के जितने के
आसार बहुत थे. लेकीन ओबीसी जागृती का झुकाव लालू, मुलायम और मायावती के तरफ जाने
के कारण EVM के घोटालेका परसेंटेज कम पड गया और भाजपा नही जीती. ओर वैसेभी भाजपा
अडवाणीजी को प्र.मं. बनाना नही चाहती थी. दलित-ओबीसी पार्टीज के सपोर्ट से कॉंग्रेस फिरसे
सत्ता मे आ गयी. नितिशजी ने ठिक वक्तपर भाजपा से नाता तोडा. क्यों की बिहार मे
नितिशजी की वजहसे ओबीसी भाजपा को वोट दे रहे थे. उन्होने ओबीसी जाग्रती का तकाजा
जानते हुए लालूजी से दोस्ती कर ली और फायदे मे रहे. बिहार के इस इलेक्शन ने सिद्ध
कर दिया की, लाट मोदी की नही ओबीसी की है. लेकीन यु.पी, मे इधर सपा-बसपा अपनी
पार्टी की ‘जात’ से और पार्टी के ‘सगे-परिवार’ से बाहर नही आ रहे थे. बसपा का
माया-प्रेम और सपा का सगा-परिवार-प्रेम बढताही जा रहा था. 2014 तक यह इतना बढ गया
की ओबीसी के सामने एकमात्र रास्ता था- ओबीसी-मोदी का. अरे भाइ गणेशकाही दर्शन करना
है तो सतिश मिश्रा के हाथी मे क्यों देखे गणेश? सीधे भाजपा के गणेश का दर्शन क्यों
ना लिया जाय. मायावतीने कोई ओबीसी फेस सामने ना आने दिया, जैसे सपा मुस्लीम फेस
आजमखान को युज कर रहा है. मायावतीजीने ब्राह्मिण फेस मिश्रा
को सामने रखा. मायाजी को इस भ्रम मे रखा गया की, बसपा को ब्राम्हीण वोट कर रहा है
इसलिए बसपा जीत रही है. मगर सच बात तो यह है की मायाजी को नॉन-यादव ओबीसी वोट कर
रहे थे जिसकी वजहसे बसपा जीत रही थी. मायाजी ने इस भ्रम को जेल जानेकी डरसे
स्वीकार कर लिया. 2014 के लोकसभा इलेक्शन मे मार खाने के बावजूद सपा-बसपा नही
सुधरे, तो फिरसे ओबीसी ने उनको 2017 मे स्टेटमेभी उलटा लटका दिया! सपा-बसप के नेता
जेल जानेकी डरसे कभीभी नही सुधरेंगे, जबतक देशमे ब्राह्मीण राज है. हमे
माया-मुलायम-भुजबलको जेल जानेकी डरसे बाहर निकालना होगा और यह तभी संभव होगा जब 2019
मे अपना केंद्रीय बहुजन राज आयेगा. और वो आ सकता है.
2017 मे सपा-बसपा को आत्मपरिक्षण (Self-introspect) टालने का कारण मिल गया.
EVM के सरपर दोष मढनेसे सपा-बसपा की हार को हल्के मे लेने वाले, आजका समय तो टाल सकते
है, मगर आगे आनेवाले समय मे होनेवाले परिणामों को कौन टालेगा?? ओबीसी जाग्रती की
वजह से दिन-ब-दिन जाती-सिस्टिम का तणाव (Tension) बढते जा रहा है. EVM की मददसे
सपा-बसपा-भाजपा टाईमपास कर लेंगे मगर कितने दिन तक? EVM तो 2-3 परसेंट से कुछ
ज्यादा फेरफार नही कर सकता! हवा के झोके से झाड के पन्ने हिल सकते है, झाड नही! 1992 से यह भारतीय पॉलिटिक्स का पूरा वृक्ष
इधरसे-उधर हिल रहा है, वो ओबीसी की बढती जाग्रती की वजहसे और उसको ना समजनेवाले
सपा-बसपा जैसी मुर्ख नॉन-ब्राह्मिण पार्टीज की वजहसे.
RSS कतई नही चाहती की ओबीसी जाग्रती को ‘ओबीसी’ नामसे पहचाना जाए. भाजपाने
1990 मे ओबीसी जाग्रती को हिंदू-लाटमे डुबो दिया. 2014 मे उसने ओबीसी जाग्रती को
‘’मोदीलाट’’ (Modi-Wave) के नामसे बदनाम किया! और आज हम EVM का नाम देकर ओबीसी
जाग्रती को ठुकरा रहे है! कितने मुर्ख है हम की जो ‘अपनीही ताकत को नकार रहे’ है
और दुष्मनों की ताकत बढा रहे है.
मैने इस आर्टिकल के दुसरे पॅरॉ मे सवाल उठाया था, कॉंग्रेस 2014 से EVM की मार
सबसे ज्यादा झेल रही है और वो आज नामशेष होने जा रही है तो, वो फिरभी शांत क्यो
है??? EVM के खिलाफ सपा-बसपा की तरह बोल क्यों नही रही! उसका सबसे बडा कारण यह है
की कॉंग्रेस रूलिंग कास्ट का सबसे बडा
अंहम हिस्सा है! भाजपा दुसरा-दुय्यम हिस्सा है.
भारतीय लोकशाही का एक ट्रेंड है. लोकशाही मे अँटी-इन्कंबंस्सी की वजह से लोग
कॉंग्रेस के खिलाफ वोट करते है. यह अँटी-इंन्कंबंस्सी हर 10 साल के बाद आती है.
स्वतंत्र भारत का पहला इलेक्शन 1952 मे हुआ था. पहली अँटी-इन्कंबंस्सी 15 साल के
बाद आयी, 1967 मे. अँटी-इन्कंबंस्सी के सभी वोट समाजवादी पार्टीज को मिले, जिसमे
लोहिया-चंदापूरी अलायन्स के कारण ओबीसी नेतृत्व फोकस मे आया. उसके बादकी
अँटी-इन्कंबंस्सी 1977 मे आयी और इसबार ओबीसी नेतृत्व का वर्चस्व थोडा और बढ गया
जिसके कारण पूरा देश मंडल कमिशन के माध्यमसे जाती-संघर्ष के रास्तेपर गतिमान हो
गया. इस गती को रोखने के लिए भारी बहुमतवाली जनता पार्टी की सरकार को गिराना जरूरी
था, सो वो सबकी सहमती से गिर गयी. RSS ने 75 सीट वाली जनसंघ-भाजपा को अंडरग्राऊंड
कर दिया ताकी कॉंग्रेस पूरी तरह बहुमत से सत्ता मे आ जाय. सो वो आ गयी, जिसने
कालेलकर आयोग की तरह मंडल कमिशन को भी पूरा दफन कर दिया. मगर इसबार रूलींग कास्ट
की रूलर एजन्सीज नया प्लॉन बना रही थी. ओबीसी जाग्रती बढती जाएगी और 10 सालबाद
आनेवाली अँटी-इन्कंबंस्सी मे जो नयी सरकार आएगी उसको मंडल कमिशन अमल मे लाने से
कोई नही रोख सकता. 500 साल का पिछला इतिहास पढकर अपना 500 सालका आगेका प्लॉन
करनेवाले लोग, आगे दस सालमे क्या होनेवाला है ये खूब जानते है. 1989 मे जो नयी
सरकार आएगी उसमे ओबीसी डॉमिनन्स होगा और मंडल कमिशन के अमलसे उसकी ताकत और बढ
जायेगी. इसलिए रूलींग कास्ट की रूलर एजन्सीज ने 1985 मेही नया प्लॉन बनाया और अमल
मे भी लाया. प्लॉन था, जब 1989 की नयी सरकार मंडल कमिशन अमल मे लाएगी तो उसको
गिराने के लिए बाबरी मस्जिद को गिराना पडेगा. इस प्लॉन के अनुसार 50 साल से बंद
पडा बनावटी रामंदिर का दरवाजा 1985 मे खोला गया और बॅलन्स रखने के नामपर ‘शहाबानो’
नामकी चिनगारी को हवा दे दी गयी! 1998-92 मे क्या हुआ और रूलींग कास्ट की रूलर
एजन्सीज के प्लॉन सक्सेस कैसे हुआ, यह दोहराने की जरूरत नही.
मंडल कितना अमल मे आया, कैसे अमल मे आया और किसतरह नॉन-क्रिमी लेयर का रोडा
डालकर उसकी गती को रोखने की कोशिश हुइ यह हम सब जानते है. ओबीसी जाग्रती धीमी हो
गयी मगर रूलींग कास्ट की नींव को धक्का देने का काम करती रही.
2009 तक ओबीसी जाग्रती ने रूलींग अप्पर कास्ट की किसी भी पार्टी को बहुमत से
राज ना करने दिया! 52 परसेंट जाग्रत ओबीसी वोटर कभी मायावती मे, तो कभी
मुलायम-लालू-भुजबल मे देश का नया मसिहा ढुंढता रहा. दरम्यान रूलींग कास्ट की रूलर
एजन्सीज ने दुसरा प्लॉन बनाया और वो था EVM का, जिसको 2004 से ही धिरे-धिरे कम
परसेंटेज के घोटाले के काम मे लगा दिया. ओबीसी वोट कुछ ज्यादाही गतीसे लालू,
मुलायम, मायावती और नितीश के तरफ जा रहे थे! दक्षिण मे महाराष्ट्रा जैसे राज्य से
छगन भुजबल और स्मृतीशेष गोपीनाथजी मुंडे जैसे ओबीसी लिडर देश के स्तरपर उभर रहे
थे. रूलींग कास्ट जानती है की EVM कुछ ज्यादा नही कर सकता. केवल EVM के भरोसे 2014
की इलेक्शन जीतना नामुमकीन है, क्यों की ओबीसी जाग्रती का परसेंटेज इतना बढ गया
है, जो EVM के घोटाले के परसेंटेज को परास्त कर सकता है. इसी वजह से रिस्क ना लेते
हुए रूलींग कास्ट की रूलर एजन्सीज ने सलाह दी- ‘मोदीजी को प्र.मं. का उम्मिदवार
बनाने की’.
इस दौरान बढती ओबीसी जाग्रती से अन्जान सपा-बसपा-राजद-सजद-भुजबल
वगैरा इस गलत फहमी रहे की केवल अपनी अपनी जात के भरोसे हम अपने अपने इलाके मे
सुरक्षित है. मायावती समजती थी, जाटव से ब्राह्मिण-जात को जोड लुंगी तो, जीत
जाऊंगी. अखिलेश-मुलायम सोचते रहे की, यादव से मुस्लीम जुडे है, तो हारने की संभावनाही
नही. भुजबल सोचते रह गये की, मेरे पिछे देशका माली बडी संख्या मे है, तो कोई माई
का लाल मुझे जेल नही भेज सकता. बस्स, आप सोचते रहेंगे, जीतते रहेंगे और तुम्हारे
दुष्मन शांती से तुम्हारी जीत देखते रहेंगे. असल मे इनको मालूमही नही की उनका
दुष्मन कौन है, वो कितना ताकतवर है और किसी भी हद को पार कर सकता है?? अपने दुष्मन
की जानकारी रखनेवाले और जीतने के लिए स्ट्रटेजी बनानेवाले विद्वान केवल ब्राह्मणों
मे नही है, बहुजनों मे भी है और वो ज्यादा इंटेलिजंट है. लेकीन रूलींग अप्पर कास्ट
के विद्वान सरकारी एजन्सीज मे बिठाए जाते है, पत्रकार बना दिये जाते है, सरकारी-गैरसरकारी
पुरस्कारोसे सम्मानित किये जाते है. ब्राह्मण
विद्वानों का कद इतना ज्यादा बढाया जाता है की, उसकी सलाह हमारे बहुजन नेता भी
मानने लगते है. उदाहरण है इलेक्शन स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर का. यह अप्पर
कास्ट के प्रशांतजी देशकी सभी पार्टीज को जितनेकी गारंटी देते है. मिडियाने तो
उनको इलेक्शनका भगवानही बना दिया है. किसीको क्रिकेटका भगवान बना दिया है तो
किसीको इलेक्शनका भगवान. हमारे बहुजन नेताओंको मार्गदर्शन के लिए ऐसेही भगवान लगते
है. लेकीन खुदकी अपनी जाती के विद्वानों को यह बहुजन नेता अपने पास भी नही आने
देते. बहुजनोंके सच्चे विद्वानों को उनकी जातिके नेताओं से दूर रखा जाता है. इसका
एक उदाहरण देना चाहता हुं---- 2015 मे दो दिन की 7 वी अखिल भारतीय सत्यशोधक गोलमेज
परिषद कल्याण (जि. ठाणे) मे संपन्न हुयी. कॉन्फरन्स का अध्यक्ष हमे बनाया गया था
और मान्यवर छगन भुजबल साहब को इनॉगरेशन करने के लिए आमंत्रित किया गया था. तो इस
कॉन्फरन्स मे श्रावण देवरे और भुजबल पूरे दिन एकसाथ रहनेवाले थे. इस होनी से
रुलींग कास्ट के विद्वान इतने डर गये की आप सोच भी नही सकते. जैसेही प्रोग्राम
कार्ड प्रकाशित हुआ, सब के सब इस कोशिश मे लग गये की, ‘कुछ भी हो जाय लेकीन भुजबल
साहब को इस प्रोग्राम मे जानेसे रोखना होगा!’ इस षडयंत्र का प्लॉन बनाया भांडारकरवाले
ब्राह्मिणोंने, मगर प्लॉन को अमलमे लाने का काम कर रहे थे माली विद्वान(?)
कॉंग्रेस EVM के षडयंत्र के खिलाफ इसलिए नही बोल रही
है की, उसको 2019 मे या 2024 मे यही EVM दिल्ली मे सत्ता देनेवाली है. भाजपा सरकारकी
अँटीइन्कंबंस्सी 10 साल मे बढ जाएगी. इसका फायदा माया-मुलायम-लालू-नितिश को नही
मिलना चाहिए, सीधे ‘कॉंग्रेसकोही मिलना चाहिए’ इस कोशिशमे सरकारी एजन्सीज अब काम कर
रही है. सभी दलित-ओबीसी नेताओं को जेल जाने का डर है. दलित-ओबीसी वोटसे वो सत्ता
तो पा लेते है, मगर अप्पर-कास्ट सिस्टिम को धक्का नही देना चाहते. जो भी नेता यह
काम करेगा उसे तुरंत जेल मे डाल दिया जाता है. बिहार इलेक्शन जीतनेके बाद लालूजीने
घोषणा की थी की, वो अब भाजपाके खिलाफ पूरे देशमे घुमेंगे. लेकीन क्या हुआ? जेलकी
डर की वजहसे माया-मुलायम-लालू-नितिश-भूजबल
ऐसा कोई भी काम नही करेंगे जिससे अप्पर-कास्ट सिस्टीम को धक्का लगे. जेल के डरसे
मुक्त होकर, अगर सब बहुजन नेतागण एकजूट होकर काम करेंगे तो 10 साल के बाद की अँटिइन्कंबंस्सी
का फायदा उठाते हुए पूरी 100 परसेंट बहुजन-सत्ता केंद्र मे स्थापित हो सकती है और हमारे
बहुजन नेता हमेशाके लिए जेलके डरसे मुक्त हो सकते है. मगर यह बात इनको कौन समजाए?
प्रशांत किशोर, सतिशचंद्रमिश्रा, सुनिल कर्वे जैसे लोग अगर इनके ऍडव्हायझर है, तो
हमारे जैसे बहुजन विद्वानोंकी कौन सुनेगा? इसी वजहसे रूलींग कास्टकी सरकारी
एजंन्सीज अपने षडयंत्रमे सफल हो जाती है. कॉंग्रेस को फिरसे सत्तामे बिठाने के लिए
रूलींग कास्ट की सरकारी रूलर एजन्सीज अब इस फिक्र मे है की, ऐसा कौनसा हादसा किया
जाय जिससे भारतीय पॉलिटिक्स मे 1989 की तरह उथल-पुथल मच जाय और लोग फिरसे कॉंग्रेस
के तरफ झुक जाय! 2019 या 2024 के सालमे जो चुनाव होगा तब EVM भी रहेगा,
माया-मुलायम-लालू-नितिश-भूजबलभी रहेंगे
और मोदीसाहब भी रहेंगे. मगर EVM का करिष्मा उनके हित मे ना होगा!! इस तरहसे
षडयंत्र रचा जा रहा है जो हमारे बहुजन नेताओं की मुर्खता की वजहसे सक्केस होने की
100 प्रतिशत संभावना है.
यह सब जो अखिल भारतीय रूलींग कास्ट की अखिल भारतीय रूलर एजन्सीज के माध्यम से
षडयंत्रों का सिलसिला चल रहा है, वह सिर्फ ब्राह्मण-वर्चस्ववाली जातीव्यवस्था को
कायम रखने के लिए किया जा रहा है. और हमारे बहुजन नेता अपने आपको जेल जाने से बचने
के लिए पुरे बहुजन पॉलिटिक्स को खतम कर रहे है. तात्यासाहब महात्मा जोतीराव फुले
और बाबासाहेब आंबेडकर के आंदोलनसे और उनके असंख्य छोटे-छोटे प्रामाणिक कार्यकर्ताओं
की 225 साल की मेहनत से ‘जातीव्यवस्था खतम करनेवाला बहुजन पॉलिटिक्स’ आज यशस्वी हो
सकता है, मगर हमारे आधे-अधुरे डरपोक दलित-ओबीसी नेताओं की वजहसे यह पॉलिटिक्स
जीतने मे कामयाब नही हो रहा है. बस्स! अब हमारे हाथमे 2 साल है.... कुछ करो .... करनाही
होगा... इन दो सालों मे आगे दिए हुए प्रोग्राम सक्केस हो सकते है..... और अप्पर
कास्ट के फांसे पलटा जा सकते है.
बस्स, दोही मार्ग है!
एक लॉंग-टर्म और दुसरा शॉर्ट टर्म
1) बौद्ध युनिव्हर्सिटिज का
मॉडेल सामने रखकर ऑल इंडिया के स्तरपर रेनेसॉन्स मुव्हमेंट चलानी पडेगी, जिससे
ओबीसी-बहुजन जागृती निगेटिव्ह से पॉझिटिव्ह हो जाए और केवल जाती-संघर्ष से
जातीव्यवस्था को खतम किया जा सके! यह एक लंबा प्रोग्राम है.... लॉंग टर्म!
फुलेआंबेडकर विद्यापीठ की स्थापना संस्था की रुपमे करनी होगी और समतावादी
पाठ्यक्रम की किताबे छापकर ऑल इंडिया लेव्हल की परिक्षाए आयोजित करनी होगी, जो काम हम अपने व्यक्तीगत तौरपर 25 सालसे कर
रहे है. विद्यापीठ का यह प्रोग्राम सरकार, सरकारकी किसी संस्था या व्यक्ती या
गॉडफादरकी मददसे नही चलना चाहिए. मतलब रुलींग कास्ट-क्लास से किसी तरहका संबंध ना
रखनेवाली हमारी किसी संस्था की माध्यमसे यह विद्यापीठ का प्रोग्राम चलना चाहिए. देश
के स्तरपर हमारे 200 कर्मचारी और अफसर का एक ऐसा ग्रुप होगा जो अपनी मेहनतकी
कमाईसे हर महिने सिर्फ 500 रूपये विद्यापीठ के बँक अकाऊंट मे जमा करेंगे और इस
विद्यापीठ के कामकाजपर निगरानीभी रखेंगे! यह सौ कर्मचारी-अफसर दुसरा कोई सामाजिक
काम नही करेंगे और नाही किसी दुसरे संघटन को पैसा देंगे! यह है एकमेव लॉंग टर्म
प्रोग्राम जो निरंतर चलता रहेगा!
2) जातीसंघर्ष का
शॉर्ट-टर्म प्रोग्राम ऐसा होना चाहीए की जिससे रूलिंग कास्ट की कमर टूट जाय. आज की तारीख मे ‘’जातीगत जणगणना’’ (Caste
census) यह एकमात्र मुद्दा है जो रूलिंग अप्पर-कास्ट की राजनिती को ध्वस्त कर सकता
है. जबतक अंग्रेज थे, सभी जाती की गणना होती थी, क्योंकी उनको जातीव्यवस्था
नष्ट होनेसे कोई नुकसान ना था. मगर जैसेही अंग्रेज हट गये और ब्राह्मिण सत्ता मे आ
गये, तो उन्होने पहला निर्णय लिया ‘ओबीसी जातीयों की गणना बंद करने का.’ क्योंकी
ब्राह्मणवाद को सबसे ज्यादा धोका ओबीसी-जातीसे है! ओबीसी जातीगणना के इसी मुद्दे
की वजहसे अडवाणी कचरे के डिब्बे मे डाल दिये गये, मुंडेजी और जयललिताजीको जान से
हाथ धोना पडा और भुजबल चाचा-भतीजे को जेल मे बंद कर दिया गया! तो ओबीसी जाती-गणना
यही ऐसा एक मुद्दा है, जो ब्राह्मणवादी रूलिंग-कास्ट की कमर तोड सकता है. 1990 मे
व्ही.पी.सिंग के बहुजन-ओबीसी सरकारने मंडल कमिशन लागू करके रुलींग कास्ट ब्राह्मण
की कमर तोडी, बस्स! वैसेही आज
ब्राह्मणवादकी कमर तोडी जा सकती है जातीगत जनगणनासे!
3) अगर पूरे देश के
ओबीसी-बहुजन बडी संख्या मे ‘जातीगत जनगणना’ का एकमात्र मुद्दा लेकर देल्ही मे
10-12 दिन के लिए रामलीला मैदान मे बैठ गये तो ........
अ) खुदको ‘ओबीसी फेस’ बतानेवाले मोदीसाहब का ओबीसी
मास्क हट जाएगा. क्यों की आर.एस.एस. उनको यह काम किसी भी हालतमे नही करने देंगी.
आ) 2019 के इलेक्शन को
देखते हुए मोदीसाहब अपने ओबीसी फेस को बचाने का प्रयत्न करेंगे. इस प्रयत्न मे वो
‘जातीगत जनगणना’ के पक्ष मे कुछ तो बोलेंगे और RSS के खिलाफ उनका संघर्ष बढ जाएगा.
इ) जातीगत जनगणना के क्रांतीकारी
मुद्देपर मोदी विरूद्ध RSS संघर्ष मे ओबीसी और दुसरे एम.पी. भी मोदी के नेतृत्व मे
एकजूट हो सकते है. क्योंकी, आज सभी
मेंबर्स ऑफ पार्लमेंट को एक बात मान्य है, की ‘हम कोईभी चुनाव ओबीसी की मांग के
खिलाफ जाकर नही जीत सकते.’
ई) जिसतरह कॉंग्रेस तोडकर
व्हि. पी. सिंग बाहर आये और ओबीसी-बहुजनोंके सपोर्टसे पी.एम. बन गये. प्रधानमंत्री
बनने के बाद व्ही.पी.सिंग ने मंडल कमिशन लागू करके रूलींग कास्ट की ऐसी कमर तोडी
के आज भी वह संभल नही पा रही है. अगर क्षत्रिय
व्हि.पी.सिंगजी ब्राह्मणवाद को ध्वस्त कर सकता है, तो ओबीसी-मोदी क्यों नही???
उ) ओबीसी जातीगणना का
आंदोलन इतना बढा और इतना लंबा होना चाहीए की जिससे भाजपा के दोही तुकडे हो... एक-
ब्राह्मिण भाजपा और दुसरा नॉन-ब्राह्मिण भाजपा
ऊ) जैसे ही मोदीजी
नॉन-ब्राह्मिण भाजपा को साथ लेकर 2019 के चुनाव मे उतरेंगे तो सभी
ओबीसी-दलित-मुस्लीम पार्टीज को उनसे महागठबंधन बनाना पडेगा. जैसे 1977 मे कॉंग्रेस
के खिलाफ जनता पार्टी के नामसे महागठबंधन बनाये थे!
ऋ) 2019 का
नॉन-ब्राह्मिण भाजपा के साथ जो महागठबंधन होगा वो ब्राह्मिण-कॉंग्रेस और
ब्राह्मिण-भाजपा के खिलाफ होगा..... और RSS का नया जनसंघ-अवतार ‘आप’ पार्टी के
खिलाफ भी होगा. मतलब इन तिनो पार्टीयों को दलित-ओबीसी के महागठबंधन मे कोई जगह ना
होगी.
ऌ) जैसे ही ओबीसी-बहुजन
महागठबंधन केंद्रीय सत्ता मे आयेगा तो वो पहला काम करेगा....... बहुजन रूलिंग
कास्ट की बहुजन डॉमिनेटेड सी.बी.आय., आय.बी., इडी, सीडी, रॉ, निऑ वगैरा...
वगैरा.... इन्ही सरकारी संस्थाओं का डर दिखाकर आजतक 3 परसेंटवाले हमपर राज कर रहे
है.
ऍ) दुसरा महत्वपूर्ण काम
होगा--- नचिअप्पन कमिटी की शिफारसे तुरंत प्रभाव से अमल मे लाना, ताकी
जाट-पटेल-मराठा से लेकर पिछडे मुस्लीमों को भी अलग आरक्षण देनेसे कोई किसीको नही
रोख सकता.
ऎ) तिसरा महत्वपूर्ण काम
हाथ मे लिया जाएगा.... 2021 की सेंसस पूर्णतः जातीगत होगी जिससे समाज के हर तबके
को अपनी संख्या के हिसाब से हर क्षेत्र मे भागीदारी देने मे कोई रोख ना होगी.
ए) चौथा महत्वपूर्ण काम
होगा.... देशकी सभी युनिव्हर्सिटीज का और स्कूल-कॉलेजेस का करिक्युलम (Text Books)
हिंदू-मुस्लीम संघर्ष के बजाय वर्ण-जाती के संघर्ष से भरा होगा! 2000 साल पहले
बौद्ध विद्यापीठों ने जीस करिक्युलम की वजहसे वर्णव्यवस्था नष्ट करनेकी
प्रबोधनक्रांती की, बस्स उसी तरह आज देशकी युनिव्हर्सिटीज अपने नये पाठ्यक्रम से
जातीव्यवस्था नष्ट करने की प्रबोधन क्रांती (Renaisance Movement) चलाएगी. प्रबोधन
क्रांती की वजहसे जाती-संघर्ष जातीयुद्ध
मे तब्दिल नही होगा और वर्णांतकी क्रांती जैसे अहिंसासे सफल हो गयी वैसेही
जातअंतकी क्रांती शांती-अहिंसासे सफल हो जाएगी.
यह कोई जातीव्यवस्था
नष्ट करने का पूरा अजेंडा नही है, मगर इससे वर्ग-जात-स्त्री विषमता नष्ट करनेका
अजेंडा हम बना सकते है. ऑल इंडिया ओबीसी-बहुजन
पॉलिटिकल महा-गठबंधनसे और उसकी आनेवाली केंद्र सरकारकी
वजहसे हम ऐसे पडावपर पहुंच जाएंगे, जहासे हम अपना कारवां सर्वंकष समता स्थापन
करनेकी ओर तेजीसे बढा सकते है!
2025 मे आर.एस.एस. की
स्थापना को 100 साल पूरे हो रहे है और वो अपनी शताब्दि ‘ब्राह्मिण राष्ट्र’ (पेशवाई)
की स्थापना करके मनाना चाहते है. हमारे बेटे, नात-नाती के गलेमे फिरसे मटकी और
पिछे झाडू बांधना चाहते है. तो क्या हमे
उस दिनतक रूखना चाहीए? या उपरोक्त दिये हुए ऍक्शन प्रोग्रामपर काम करना चाहिए???
दो साल है हाथमे... बस्स!!!!!!????
लेखक - प्रा. श्रावण देवरे
Mobile - 94 22 78 85 46